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शनिवार, 30 नवंबर 2013
पति का धर्म परिवर्तन व् दूसरे विवाह पर हिन्दू महिला का अधिकार
मेरे एक आलेख पर जो कि जब मैं नारी ब्लॉग की सदस्या थी पर मेरे आलेख विवाह विच्छेद /तलाक और महिला अधिकारपर टिप्पणी कर प्राची पाराशर पूछती हैं -
शुक्रवार, 29 नवंबर 2013
सहनशक्ति यदि कही अधिक होती है तो वो नारियों में ही होती है और कब तक वे सहें ? प्रश्न उनकी सहनशीलता की ही नहीं है , अधिक ये है कि क्या नारियों ने इसे अपना नसीब ही बना लिया है या उनमे लड़ने की क्षमता का विकास तेजी से हो रहा है। छेड़खानी सिर्फ लड़कियों तक ही सीमित नहीं रह गयी है , शादी - शुदा अधिक उम्र की महिलाये भी तेजी से शिकार हो रही हैं , तब क्या उन्हें चुप रह कर सब कुछ सहते रहना चाहिए या आवाज उठानी चाहिए ? जुल्म घरों में भी होते हैं , पति यदि शक्की हो तो महिला जीना ही दूभर हो जाये , पर कितनी महिलाएं ऐसी हैं जो आवाज उठाती हैं ? ख़ामोशी को गहना बना लेती है तो चरित्रहीनता का पुरस्कार दे दिया जाता है , तब आखिर महिला क्या करे , आवाज उठाये ? कई नारियों पर ससुराल जुल्म करते हैं तो कई पर भाई और पिता। ऐसी भी नारियां हैं जो अपने बेटों के द्वारा ही प्रताड़ित की जाती हैं, ऐसे में वो क्या करें?
आज की आवाज है कि जुल्म के खिलाफ आवाज उठाये हर नारी , जो बिलकुल सही है पर क्या ये विरोध का रास्ता उनके लिए आसान है ? आवाज नहीं उठाये तो स्व्यं घुटती है नारी और यदि आवाज उठाये तो दुनिया के सारे लांछन उसी पर लगाये जाते हैं तो क्या करें आखिर ? तहलका कांड के बाद नारी की स्थिति पर मन बार - बार सोंचता है।
मंगलवार, 26 नवंबर 2013
श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है .....डा श्याम गुप्त.....
श्याम स्मृति- ......बंधन ही स्वतन्त्रता है
.....
बंधन क्या है, मुक्ति क्या है,
स्वतन्त्रता क्या है ? क्या सांसारिक कर्तव्य, कृतित्व, दायित्व बंधन हैं ?
गृहस्थी, पारिवारिक सम्बन्ध, आपसी संवंध या स्त्री-पुरुष के प्रेम व विवाह या
दाम्पत्य संवंध बंधन हैं ? क्या इन बंधनों से मुक्त व स्वतंत्र होकर जीवन-संगीत का
आनंद लिया जा सकता है | क्या स्त्री-पुरुष आपसी बंधनों से मुक्त होकर जीवन-सुख का
वास्तविक आनंद उठा सकते हैं|
नहीं .....जिस प्रकार वीणा के तारों
का दोनों छोरों पर बंधन एवं आवश्यक व उपयुक्त कसाव मधुर संगीत के लिए आवश्यक है
अन्यथा तारों का कसाव या तनाव अधिक होगा तो टूटने का अवसर रहेगा, तार ढीले होंगे तो
संगीत उत्पन्न ही नहीं होगा| उसी प्रकार जीवन है, जीवन व्यवहार, दाम्पत्य-जीवन,
स्त्री-पुरुष संवंध के संगीतमय व मधुमय होने हेतु दोनों छोरों पर समुचित बंधन
व समुचित दृडता आवश्यक है तभी मानव उन्मुक्त जीवन व्यतीत कर सकता है |
मुक्ति प्राप्ति की इच्छा या योग व
अनुशासन भी तो एक बंधन ही है | योगेश्वर श्रीकृष्ण स्वयं जीवन भर कर्म व
पारिवारिक, सांसारिक बंधनों में बंधे रहे ....हाँ लिप्त नहीं रहे जो बंधन व मुक्ति
दोनों के लिए ही अत्यावश्यक है ....और योगेश्वर का ही आदेश है गीतामृत रूप में|
अतः बंधन आवश्यक है, हाँ तारों को
दोनों छोरों पर समुचित रूप से कसे हुए होने चाहिए ताकि जीवन पूर्ण स्वतन्त्रता व
उन्मुक्तता से जिया जा सके| यही बंधन मानव को अनिर्बन्धित–बंधित करता है, मुक्ति
का मार्ग प्रशस्त करता है |
कलियुग की जानकी -कहानी
''अजी सुनते हैं ...जरा अन्दर तो आइये जल्दी से ...!'' दबी जुबान में घबराई सुमित्रा ने स्वागत कक्ष में लड़के वालों की मेहमान नवाज़ी में जुटे अपने पतिदेव नरेन्द्र बाबू को बुलाया तो वे लड़केवालों से हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए ''अभी आता हूँ लौटकर ...आप नाश्ता कीजिये प्लीज '' ये कहकर मन ही मन खीजते हुए शयन कक्ष की ओर चल दिए .शयन कक्ष में पहुँचते ही वे सुमित्रा पर बिफर पड़े -''कमाल करती हो ...जानती हो ना बाहर कौन लोग आये हैं और ....और जानकी कहाँ है ?...तैयार नहीं हुई वो अब तक ?'' इससे आगे वे कुछ पूछते सुमित्रा ने भिंची मुट्ठी खोलकर एक मुसा हुआ कागज का टुकड़ा उनकी ओर बढ़ा दिया .नरेन्द्र बाबू आँखों से धमकाते हुए बोले -'' ये क्या है ? ...कर क्या रही हो तुम ?'' इस बार सुमित्रा का धीरज जवाब दे गया .वो दांत पीसते हुए बोली -'' मैं कुछ नहीं कर रही ! आपकी लाडली ही मुंह काला कर भाग गयी है और दो छूट जवान लड़की को ...लो पढो !'' इस बार नरेन्द्र बाबू आवाक रह गए .सुमित्रा के हाथ से कागज का टुकड़ा छीनकर एक एक शब्द ध्यान से पढने लगे .लिखा था -'' पापा मुझे ये शादी नहीं करनी .मैं जा रही हूँ .'' जानकी की लिखाई पहचानते थे वे .नरेन्द्र बाबू के पैरों तले से ज़मीन खिसक गयी .जानकी ऐसा कर सकती है विश्वास नहीं हुआ पर प्रत्यक्ष प्रमाण ठेंगा दिखा रहा था मुंह चिढ़ा चिढ़ाकर .नरेन्द्र बाबू को लगा मानों इसी क्षण से वे दुनिया के सबसे कंगाल व्यक्ति हो गए हैं .जिस बेटी पर नाज़ था वो ऐसा धोखा देगी कभी कल्पना भी नहीं की थी .ये सच था कि समृद्ध परिवार के अमेरिका में बसे लड़के का रिश्ता आते ही उन्होंने जानकी की इच्छा जाने बिना ही रिश्ता तय करने का मन बना लिया था और जानकी को दुनियादारी की दुहाई देकर अंधी-मूक-बधिर बन जाने हेतु विवश कर दिया था लेकिन ये सब जानकी का हित सोचकर ही किया था पर जानकी ने सब के मुंह पर कालिख पोत दी . नरेन्द्र बाबू ने आंसू बहाती सुमित्रा के कंधे पर हाथ रखा और दिल कड़ा कर स्वागत कक्ष की ओर चल दिए .लड़के वाले कुछ व्यग्र नज़र आ रहे थे .नरेन्द्र बाबू ने हाथ जोड़ते हुए कहा -'' क्षमा चाहता हूँ ...पर आज रिश्ते की बात आगे न बढ़ पायेगी .बिटिया की तबियत अचानक ख़राब हो गयी ...आप लोगों को कष्ट हुआ इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !'' उनके विनम्र निवेदन करने पर लड़के की माँ भड़कते हुए बोली -'' भाईसाहब ऐसी भी क्या तबियत ख़राब हो गयी ...मजाक थोड़े ही है ...हमने अपने बेटे को इसीलिए इंडिया बुलाया था कि एक बार लड़का -लड़की आपस में मिल लें ..पर आप तो हमें लाखों का चूना लगा रहे हैं .अमेरिका से यहाँ तक का किराया कितना लगता है ...जानते तो होंगे आप .....बहाने मत बनाइये सच क्या है बतला दीजिये .आपकी लड़की जैसी हजारों पड़ी है शहर में ...वो तो मेरे बेटे को उसका फोटो 'मैरिज डॉट कॉम' पर पसंद आ गया वरना हम अपनी हैसियत से इतना गिरकर शादी करने को कतई तैयार नहीं थे .आप भी कुछ बोलिए ना !'' ये कहते हुए लड़के की माँ ने लड़के के दुबले-पतले बाप को कोहनी मारी.लड़के के पिता सोफे पर से खड़े होते हुए बोले -''नरेन्द्र बाबू ..मुझे लगता है आपकी बेटी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं है .सच में आजकल लड़कियां कुछ ज्यादा ही बिगड़ गयी हैं .अपनी मर्जी से पहनना ,घूमना-फिरना ,शादी और भी न जाने क्या क्या !!'' वे इससे आगे कुछ कहते तभी नरेन्द्र बाबू का चेहरा सख्त हो गया .नरेन्द्र बाबू रूखे स्वर में बोले -'' देखिये मैं पहले ही आपको जो असुविधा हुई है उसके लिए खेद प्रकट कर चुका हूँ .आपके बेटे के आने-जाने का जो खर्च हुआ हो वो भी मैं चुका देता हूँ ...प्लीज अब आगे कुछ मत कहियेगा !'' नरेन्द्र बाबू के ये कहते ही लड़का थोडा अकड़ता हुआ बोला -'' अंकल यूं नो माई टाइम इज वैरी पिरिशियस ...वो तो मॉम -डैड ने प्रेशर डाला था ...मिडिल क्लास लड़की से तो मैं बात भी नहीं करता ...मैरिज तो ....और हां कहाँ है वो ...कहीं भाग तो नहीं ?'' लड़के के ये कहते ही नरेन्द्र बाबू का हाथ उसे थप्पड़ मारने के लिए उठ गया पर तभी डोर बैल बज उठी .नरेन्द्र बाबू के पीछे खड़ी सुमित्रा तुरंत किवाड़ खोलने के लिए उधर बढ़ ली .किवाड़ खोलते ही उसके आश्चर्य की सीमा न रही .उसके मुंह से अनायास ही निकल पड़ा -'' जानकी तू !!!'' जानकी ने माँ के कंधे पर हाथ रखा और नरेन्द्र बाबू के पास पहुंचकर दूल्हा बनने आये लड़के वालों को संबोधित करते हुए बोली -'' ....मिस्टर फ्रॉड ये देखो मेरे हाथ में हैं तुम्हारे सारे अपराधों से सम्बंधित सबूत ....अमेरिका से आये हो .....ऑटो पकड़कर !!!......और मिडिल क्लास लडकी से बात भी नहीं करते .....किराये की खोली में रहने वाले !!!बाबू जी आप तो इनकी चमक-दमक में खो गए पर मैंने इंटरनेट पर सर्च किया तो जिस कम्पनी में ये अपने को सी.ई.ओ. बता रहा था वो तो कब की दिवालिया घोषित की जा चुकी है और जो टाइम इसने यहाँ इंडिया में अपनी फ्लाईट आने का बताया था उस टाइम पर तो अमेरिका क्या भूटान तक की फ्लाईट नहीं आती .अपनी सहेली प्रिया के पुलिस अंकल की मदद से इसका कच्चा-चिटठा खोजा तो ये जनाब दो दो शादी कर उनको धोखा देने के अपराधी निकले .....ये आप को ज़लील कर रहे थे अब देखिएगा इनका बैंड कैसे बजता है ? '' ये सुनते ही वे तीनों भागने के लिए ज्यों ही गेट की ओर बढे तभी एक अधेड़ महिला ने बाहर से आकर उनका रास्ता रोक दिया और बोली -'' दूल्हे राजा कहाँ भागते हो ? हम गरीबों को लूटकर चैन न पड़ा जो एक और लड़की की जिंदगी बर्बाद करने चले थे .'' इतना कहकर उसने पैरो की चप्पल निकाल ली .वो लड़के के सिर पर चप्पल जड़ने ही वाली थी कि पुलिस की जीप आ पहुंची .पुलिस उन तीनों को लेकर जब वहां से चली गयी तब नरेन्द्र बाबू जानकी के सिर पर हाथ रखते हुए बोले -जानकी तूने कलियुग में भी अपने पिता की लाज रख ली . तूने अपना नाम सार्थक कर दिया .मुझे माफ़ कर दे !'' ये कहते कहते उनका गला भर आया .जानकी ने उनकी हथेली अपनी हथेली में कसते हुए और पास खड़ी माँ को बांहों में लेते हुए कहा -'' बस अब कोई राम ही ढूंढना मेरे लिए .'' जानकी की बात सुनकर नरेन्द्र बाबू और सुमित्रा दोनों हो मुस्कुरा दिए !
शिखा कौशिक 'नूतन'
सोमवार, 25 नवंबर 2013
कहानी- सवाल एक करोड़ का
रियलटी शो जो कहूगां
सच कहूगां चल रहा हैं ।भव्य सजे हुए मंच पर एकर प्रतियोगी आमने-सामने बैठ हुए हैं
।हजारों लोग दर्शक दीर्या में करोडों लोग टीवी के माध्यम से इस शो को देख रहें हैं
। क्योंकि सवाल आखरी हैं , वो भी एक करोड
का एंकर एक बार फिर सवाल दोहोराता हैं तो बताईए प्रतिभा जी ,क्या आपका बेटा अमन
आपके पति से हैं,या प्रेमी से ?
एक भयानक खामोंशी
मंच पर छाई हुई हैं । प्रतिभा इस सवाल का जवाब दे तो कैसे दे । वो एक माँ हैं ।
सवाल एक करोड का नहीं उसके बेटे अमन के असित्व का हैं ।
प्रतिभा आत्म मथंन
में लगी हुई हैं । समुद्र मथंन से तो अमृत और विष दोनों निकले थे । लेकिन प्रतिभा
के लिए इस आत्म मथंन से विष ही विष निकल रहा हैं । एंकर एक बार फिर गरजता हैं ।
प्रतिभा जी आपको इस शो के मांध्यम से करोडो लोग देख रहें हैं । सभी लोग सच जानना
चहाते हैं । सच हमेशा कड़वा होता हैं । और इस कड़वें सच का सामना हर किसी को कभी न
कभी करना ही पडता हैं । तो बताईए प्रतिभा जी क्या हैं ? अमन का सच ।
अब न ये सवाल एक
करोड का था, न सच झूट का, सवाल था अपने बेटे अमन के असित्व का जिसे वह दाव पर लगा
चुकी थी। अब वह हाँ या न क्या कहती हैं, इससे कोई फर्क नहीं पडता ।
तरूण कुमार (सावन)
यक्ष प्रश्न........ डा श्याम गुप्त की कहानी......
. यक्ष-प्रश्न ...कहानी
पुष्पाजी अपनी महिला मंडली के नित्य
सायंकालीन समागम से लौटकर आयें तो कहने लगीं,’ आखिर राम ने एक धोबी के कहने पर
सीताजी को वनबास क्यों देदिया? क्या ये उचित था |
क्या हुआ? मैंने पूछा, तो कहने लगीं,’ आज
पर्याप्त गरमा-गरम तर्क-वितर्क हुए| शान्ति जी कुछ अधिक ही महिलावादी हैं, इतना कि
वे अन्य महिलाओं के तर्क भे नहीं सुनतीं | उनका कहना है कि पुरुष सदा ही नारी पर
अत्याचार करता आया है | मेरे कुछ उत्तर देने पर बोलीं कि अच्छा तुम डाक्टर साहब से
पूछ कर आना इनके उत्तर | वे तो साहित्यकार हैं और नारी-विमर्श आदि पर रचना करते
रहते हैं | वे आपसे भी बात करना चाहती हैं |
क्यों नहीं ,मैंने कहा , अवश्य, कभी भी |
दूसरे दिन ही तेज तर्रार शान्ति जी
प्रश्नों को लेकर पधारीं, साथ में अन्य महिलायें भी थीं | बोलीं ‘क्या उत्तर हैं
आपके इन परिप्रेक्ष्य में ? मैंने कहने का
प्रयत्न किया कि एसा नहीं है, राम शासक थे और.....वे तुरंत ही बात काटते हुए कहने
लगीं ,’ राम राजा थे..प्रजा के हित में व्यक्तिगत हित का परित्याग, लोक-सम्मान
आदि..... ये सब मत कहिये, घिसी-पिटी बातें हैं, बेसिर-पैर की...पुरुषों की सोच की
...| कुछ महिलाओं ने कहा भी कि पहले उनकी बात तो सुनिए, परन्तु वे कहती ही गयीं,
आखिर नारी ही क्यों सारे परीक्षण भोगे, पुरुष क्यों नहीं?
मैंने प्रति-प्रश्न किया, अच्छा बताइये, क्या
एक स्त्री के कहने पर राम-वनबास... क्या स्त्री का पुरुष पर अत्याचार नहीं था|
पुरुष तो कभी ये प्रश्न नहीं उठाते, क्यों | प्रश्न उठते भी हैं तो... हाय,
विरुद्ध विधाता....आज्ञाकारी पुत्र ..में दब कर रह जाते हैं| विवाह सुख भोगते राम
को ठेल दिया वनबास में और दशरथ को मृत्युलोक में | क्या स्त्री पर पुरुषों को
प्रश्न उठाने का अधिकार नहीं है ?
शान्ति जी कुछ ठिठकीं परन्तु हतप्रभ नहीं
हुईं, बोलीं, तो आप मानते हैं कि जैसे राम पर अत्याचार हुआ वैसे ही सीता पर भी
अग्नि-परिक्षा व सीता त्याग रूपी अत्याचार –अन्याय हुआ, तो राम पुरुषोत्तम क्यों
हुए ?
क्या आप समझती हैं कि राम को कष्ट नहीं हुआ
होगा यह निर्णय लेते हुए, मैंने कहा, पत्नी-सुख वियोग एवं आत्म-ग्लानि की दो-दो
पीडाएं झेलना कम दुःख होगा | वे चाहते तो दूसरा विवाह कर सकते थे, परन्तु नहीं सामाजिक
परिवर्तन की उस युग-संधिबेला पर राम एक उदाहरण, एक मर्यादा स्थापित करना चाहते थे –प्रत्येक
स्थित-परिस्थिति में एक पत्नीव्रत की |
तो
उन्होंने स्वयं वनबास क्यों नहीं लेलिया, साथ में बैठी प्रीति जी ने पूछ लिया |
तो फिर एक पत्नीव्रत मर्यादा कैसे स्थापित
होती, और वे कायर कहलाते| समस्या समाधान से पलायन करने वाला भगोड़ा, कापुरुष राजा |
सीता को यह कब मान्य था अतः उन्होंने स्वयं ही निर्वासन को चुना| पति का अपमान
प्राय: पत्नी को स्वयं का ही अपमान प्रतीत होता है, क्या यह सही नहीं है, मैंने
कहा| सब चुप रहीं |
सीता ने स्वयं ही निर्वासन को चुना...ये
नया ही बहाना गढ़ लिया है आपने, वाह!... शान्ति जी ने कहा |
मैंने पुनः प्रयास किया, ‘वास्तव में जैसे राम
का वनगमन एक राजनीति-सामाजिक कूटनीति का भाग था वैसे ही सीता-वनबास भी विभिन्न
नीतिगत राजनीति के कार्यान्वन का भाग थे |
कैसे ! वे बोल पडीं |
देखिये
मैंने कहा, कुछ विद्वानों का मत है कि सीता-वनबास हुआ ही नहीं, क्योंकि तुलसी की
रामचरित मानस एवं महाभारत के रामायण प्रसंग में इस घटना का रंचमात्र भी उल्लेख
नहीं है, अतः बाल्मीक रामायण में यह प्रसंग प्रक्षिप्त है, बाद में डाला गया, राम
को बदनाम करने हेतु| परन्तु मेरे विचार से जन-श्रुतियां, लोक-साहित्य व स्थानीय
प्रचलित कथाये आदि में कुछ अनकही बातें अवश्य होती हैं जो लोक-स्मृति में रह जाती
हैं| जिन्हें पात्र की महत्ता व संगति से विपरीत मानकर सामाजिक-साहित्यकार-रचनाकार
छोड़ भी सकते हैं|
वस्तुतः राम एक अत्यंत ही नीति-कुशल
राजनैतिज्ञ थे| समस्त भारत की शक्तियों का ध्रुवीकरण करके अयोध्या व भारतवर्ष को
अविजित शक्ति का केंद्र बनाना उनका ध्येय था | पूरे भारत में उन्होंने अपनी
मित्रता, कूटनीति, धर्माचरण व शक्ति-पराक्रम के बल पर शक्तियां एकत्रित कीं| वनांचल
के तमाम स्थानीय कबीले, वनबासी शासक, आश्रम व ऋषि, मुनि अस्त्र-शस्त्रों व शक्ति
के केंद्र थे | विश्वामित्र, वशिष्ठ, अगस्त्य, भारद्वाज सभी ने राम को
अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये, परेंतु महर्षि बाल्मीकि जो बहुत बड़े शक्ति के केंद्र
थे, उन्होंने सिर्फ आशीर्वाद दिया ..अस्त्र-शस्त्र नहीं | जैसा मानस में पाठ
है....
‘मुनि कहँ राम दण्डवत कीन्हा। आसिरवादु विप्रवर दीन्हा।।’
वाल्मीकि जी ने आशीर्वाद तो दिया किन्तु दिव्यास्त्रों के
भण्डार का नाम तक नहीं लिया। अतः लंका विजय अर्थात
समस्त भारतीय भूभाग का ध्रुवीकरण के पश्चात सिर्फ अयोध्या के निकटवर्ती वाल्मीकि
आश्रम ही शक्ति का केंद्र बच गया था| राम ने सोचा, यह भण्डार अब व्यर्थ है इसका सदुपयोग होना
चाहिए। उसी वन के समीप सीता को प्रेषित किया, जहाँ महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था। राम का यह कृत्य महर्षि को अच्छा नहीं लगा। महर्षि ने
साध्वी सीता को संरक्षण दिया। महर्षि ने उनके
माध्यम से राम को सबक सिखाने का निश्चय कर, लव व कुश को दिव्यास्त्रों का संचालन सिखाया। समस्त शस्त्र-शास्त्र
उन्हें सौंप कर अयोध्या से लड़ने योग्य बनाया| माँ के लाड़-प्यार व संरक्षण में और
महर्षि के कुशल निर्देशन में पल्लवित बच्चे अश्वमेध के घोडे
को पकड़ने के प्रकरण में विश्व-विजयी अयोध्या की समस्त सेना को हराने में सफल हुए|
इस युद्ध में लंका-विजयी शूरवीरों के दर्प व उनकी शक्तियों का भी दलन हुआ जो राम की
कूटनीति का भाग था| इस प्रकार राम व सीता ने परस्पर सहयोग, सामंजस्य व कूटनीति से
अपने पुत्रों को भी महलों के राजसी विलास, लंका-विजयी विश्व-विख्यात महान सम्राट
राजा रामचंद्र के प्रभामंडल के दर्प से दूर वनांचल में ज्ञानी ऋषियों-मुनियों छत्र-छाया
में पालन-पोषण का प्रवंध कर दिया ताकि वे सर्व-शक्तिमान बन कर उभरें|
ये त्याग की पराकाष्ठाएं हैं |
इसीलिये राम,राम हैं....सीता, सीता|
त्याग, तप, धैर्य व कष्टों में तपकर ही तो व्यक्ति महान होता है| यदि राम-वनबास
नहीं होता तो कौन जनता राम को, लक्ष्मण को, वे सिर्फ एक राजा होकर रह जाते, न
इतिहास पुरुष होते, न पुरुषोत्तम न प्रभु राम|
कृष्ण-राधा के त्याग तप ने ही
उन्हें श्रीकृष्ण व श्रीराधिका जी बनाया अन्यथा कौन पूछता सीता को कौन राधा
को...वे भी श्रीकृष्ण की एक और रानी या किसी अन्य पात्र की पत्नी बन कर इतिहास में
गुम हो जातीं |
तो आपका मत है कि सीता के साथ
कोइ अन्याय नहीं हुआ, शान्ति जी जल्दी-जल्दी बोलीं, ये सारे प्रश्न निरर्थक हैं?
आप लोग यह बताइये, मैंने भी
प्रश्न पूछ लिया, कि क्या सीता के काल-खंड में विदुषी स्त्रियाँ नहीं थीं, उन्होंने
ये प्रश्न क्यों नहीं उठाये? विज्ञ, पढी-लिखी, विदुषी, बीर-प्रसू, शस्त्र-शास्त्र
कुशल तीनों माताएं; कैकयी जैसी युद्धकुशल, नीतिज्ञ, देवासुर संग्राम में दशरथ की
रथ-संचालिका एवं सहायिका ने ये प्रश्न क्यों नहीं उठाये? सीता की अन्य तीनों बहनों
ने क्यों नहीं उठाये?
यदि उठाये भी होंगें तो हमें
कैसे ज्ञात होगा, वे कहने लगीं, पुरुष दंभ व राजाज्ञा में दबा दिए गए होंगे |
उसी प्रकार जैसे सीता पर अत्याचार के तथ्य आपको
ज्ञात हैं, मैंने स्पष्ट किया, अन्यथा हमें क्या पता कोई राम-सीता थे भी या नहीं,
सीता वनबास हुआ भी था या नहीं | फिर तो सारे प्रश्न ही निरर्थक होजाते हैं|
और अग्नि-परिक्षा का क्या
औचित्य है आपके अनुसार | प्रीति जी ने पूछा |
आपने रामचरित मानस तो कई बार पढी होगी| ध्यान
दें ,जब राम कहते हैं...
“तुम
पावक महं करहु निवासा, जब लगि करों निशाचर नासा |
जबहिं
राम सब कहा बखानी, प्रभु पद हिय धरि अनल समानी|
निज
प्रतिबिम्ब राखि तहं सीता, तैसेहि रूप सील सुविनीता | “ ...अरण्यकाण्ड
अर्थातु सीताजी तो महर्षि
अग्निदेव के आश्रय में चली गयीं जो उनके श्वसुर थे| वह तो नकली सीता थी जिसका हरण
हुआ|
अब लंकाकाण्ड की चौपाई पर गौर
करें ....
“सीता
प्रथम अनल महं राखी, प्रकट कीन्ह चहं अंतरसाखी”
‘तेहि कारन
करूणानिधि, कछुक कहेउ दुर्वाद,
सुनत जातुधानी सबै
लागीं करन बिसाद |’
आखिर
बिना असली सीता को प्रकट किये वे नकली सीता को वहां से कैसे साथ लेजाते |
तो फिर सीताजी लौटी क्यों नहीं राम के साथ?
किसी महिला ने एक और प्रश्न उठाया |
जिससे कूटनीति का पटाक्षेप भी सत्य लगे,
कुछ तो स्वाभिमान प्रकट होना ही चाहिए नारी का,
ताकि प्रत्येक एरा-गेरा पुरुष इस उदाहरण रूप में स्त्री पर अत्याचार न करने
लगे|
यह तीसरी अग्नि-परिक्षा थी, वास्तव में शक्ति के पूर्ण ध्रुवीकरण के पश्चात, शक्ति-रूप की आवश्यकता समाप्त
यह तीसरी अग्नि-परिक्षा थी, वास्तव में शक्ति के पूर्ण ध्रुवीकरण के पश्चात, शक्ति-रूप की आवश्यकता समाप्त
होगई | आदि-शक्ति को
ब्रह्म से पूर्व पहुँचना होता है गोलोक की व्यवस्था हेतु, मैंने हंसते हुए कहा |
वे भी मुस्कुराने लगीं |
पूरा समाधान नहीं होपाया, आपके उत्तर,
तर्क व व्याख्याएं सटीक होते हुए भी पूर्ण नहीं हैं | शान्ति जी उठकर चलते हुए
बोलीं |
पूर्ण यहाँ कौन है शान्ति जी? इस प्रकार
के ये प्रश्न युग-प्रश्न हैं..यक्ष-प्रश्न...प्रत्येक युग में अपने-अपने प्रकार से
प्रश्नांकित व उत्तरित किये जाते रहेंगे | मैंने समापन करते हुए दोनों हाथ जोड़कर
कहा, हम तो बस आप सबको, सभी महिलाओं को
‘जोरि जुग पाणी’ प्रणाम ही कर सकते हैं इस आशा में कि शायद रामजी की एवं
पुरुष-वर्ग की इस तथाकथित भूल का रंचमात्र भी निराकरण होजाए|