बुधवार, 2 अक्टूबर 2013

रक्षा-बंधन का उपहार -लघु कथा


रक्षा बंधन के पावन पर्व पर किशोरी रक्षिता ने अपने बड़े भाई राघव की कलाई पर राखी बांधी और तिलक लगाकर आरती उतारी .मम्मी-पापा के साथ -साथ रक्षिता भी प्रतीक्षा करने लगी कि आज भैया क्या उपहार देंगें पर राघव ने अपनी कलाई पर बांधी गयी राखी को दुसरे हाथ की उँगलियों से हल्के से छूते हुए कहा -'' रक्षिता हर वर्ष मैं तुम्हे महंगें उपहार देता हूँ इस मौके पर.. ..जो साल भर में पुराने हो जाते हैं पर आज मैं तुम्हें तीन वचन उपहार के रूप में दूंगा जो कभी पुराने नहीं होंगे .मैं पहला वचन देता हूँ -''सड़क पर ,बस में , ट्रेन में कहीं भी किसी महिला के साथ छेड़छाड़ को अनदेखा नहीं करूंगा ''......मैं दूसरा वचन देता हूँ -'' मैं अपने विवाह में दहेज़ नहीं लूँगा ''....मैं तीसरा वचन देता हूँ -'' मैं कन्या भ्रूण हत्या नहीं करूंगा और अन्य लोगों को भी यह पाप करने से रूकूंगा !....रक्षिता यदि मैं इन वचनों का दृढ़ता से पालन कर पाया तभी तेरी बांधी गयी हर राखी का क़र्ज़ चूका पाऊंगा .'' रक्षिता ने नम आँखों से राघव की ओर देखते हुए कहा -'' भैया आज आपने नारी जाति के प्रति जो सम्मान भाव से युक्त ये वचन निभाने का निश्चय किया है उससे बढ़कर उपहार कोई भी भाई अपनी बहन को नहीं दे सकता .'' दोनों युवा होते बच्चों की सुन्दर बातें सुनकर रक्षिता व् राघव के मम्मी-पापा की आँखें भी ख़ुशी से भर आई .



शिखा कौशिक 'नूतन'

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

काश यह वचन हर भाई दे पाता .....
कहानी के लिए आभार