मज़म्मत करनी है मिलकर बिगड़ते इस माहौल की ,
मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की.
हमें न खौफ मर्दों से न डर इन दहशतगर्दों से ,
मुआफी देनी नहीं है अब मुजरिमाना किसी काम की.
मुकम्मल रखती शख्सियत नहीं चाहत मदद की है ,
मुकर्रम करनी है हालत हमें अपने सम्मान की.
गलीज़ है वो हर इन्सां जिना का ख्याल जो रखे ,
मुखन्नस कर देना उसको ख्वाहिश ये यहाँ सब की.
बहुत गम झेले औरत ने बहुत हासिल किये हैं दर्द ,
फजीहत करके रख देगी मुकाबिल हर ज़ल्लाद की .
भरी है आज गुस्से में धधकती एक वो ज्वाला है ,
खाक कर देगी ''शालिनी''सल्तनत इन हैवानों की.
शालिनी कौशिक
[कौशल]
शब्दार्थ-मज़म्मत-निंदा ,मरम्मत-शारीरिक दंड ,मुकर्रम-सम्मानित,मशक्कत-कड़ी मेहनत,मुकाबिल -सामने वाला ,गलीज़-अपवित्र,मुखन्नस-नपुंसक,मुकम्मल-सम्पूर्ण ,जिना-व्यभिचार
3 टिप्पणियां:
स्वागत इस जज्बे का और इस में हम सब शामिल है . ये सल्तनत तुम जैसे ही हौसलेमंद नारियों की शक्ति है और इसको अंजाम तक पहुँचाने तक जारी रखना है।
Bahut zaroori Tewar se bhri ghazal...
प्रभावशाली ,
जारी रहें।
शुभकामना !!!
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