रविवार, 30 सितंबर 2012

बोझ [एक लघु कथा ]







ऑपरेशन थियेटर के बाहर खड़े रोहित का दिल जोर जोर से धड़क रहा था .जया के अचानक  ही डिलीवरी डेट से दो हफ्ते पहले लेबर पेन उठ  जाने के कारण रोहित आनन् फानन में उसे पास के एक नर्सिंग होम में ले आया  था .सघन चिकित्सा कक्ष से निकली एक नर्स ने आकर रोहित को तसल्ली देते हुए कहा -''.....आपकी वाइफ और बेबी ठीक है .मुबारक हो आपके घर लक्ष्मी आई है !'' बेटी हुई है सुनकर रोहित थोडा बुझ सा गया  .तभी काफी देर से वहीँ उपस्थित एक बुजुर्ग उसके पास आकर बोले -''क्या बेटी के होने से हताश हो ?'' रोहित ने झिझकते हुए कहा -''...नहीं ....नहीं तो '' बुजुर्ग बोले -'' बेटा ऐसा कभी मत करना वरना ये बोझ बनकर जिंदगी भर अपने दिल पर ढ़ोना होगा .मैं भी अपनी बेटी के होने पर ऐसे ही दुखी हो गया था .मेरी पत्नी से मेरा इसी झुंझलाहट में इतना झगडा हुआ कि वो कई महीनों को मायके चली गयी थी .घर वालों के समझाने पर मैं उसे वापस ले आया .समय बीतता गया और मेरी वही बिटिया आज इतनी काबिल है कि लोग पूछते हैं ..''आप डॉ नीरजा के पिता जी हैं !''...तब मेरा सिर गर्व से ऊँचा उठ जाता है पर....फिर अपनी बिटिया के जन्म पर अपने किये व्यवहार को सोचकर दिल पर एक बोझ सा महसूस करता हूँ .बेटा तुम ऐसा कभी मत होने देना .''रोहित ने उन बुजुर्ग के झुककर चरण स्पर्श करते हुए कहा -''.....आप डॉ नीरजा के पिता जी हैं !!!....मतलब जिन्होंने अभी अभी मेरी पत्नी और बच्ची की ऑपरेशन कर जान बचाई है .आपका बहुत बहुत शुक्रिया आपने न केवल मेरी सोच को बदला है बल्कि मुझे मेरी बिटिया के सामने भविष्य में शर्मिंदा होने से भी बचा लिया है .''

                                                          

                      शिखा कौशिक 

रविवार, 23 सितंबर 2012

शाबाश इसे कहते हैं नारी सशक्तिकरण !क्यूं सही कहा ना ?

शाबाश इसे कहते  हैं नारी सशक्तिकरण !क्यूं सही कहा ना ?

पति को छोड़ना मंजूर, गुटखा नहीं: मियां-बीवी ने दी तलाक की अर्जी

आपका-अख्तर खान "अकेला"परपत्रकार-अख्तर खान "अकेला"- 4 घंटे पहले
[image: पति को छोड़ना मंजूर, गुटखा नहीं: मियां-बीवी ने दी तलाक की अर्जी] *भिवानी.* पति, पत्नी और 'वो' के चलते कई परिवार टूटे होंगे लेकिन यहां भिवानी में आए एक मामले में मियां बीवी के बीच 'गुटखा' आ गया। बात अब तलाक तक पहुंच गई है। गुटखे की लत छोडऩे की बजाय पत्नी अपने पति को ही छोडऩा चाहती है।वाकया कुछ इस तरह है। जिले की एक महिला ने एसपी कार्यालय में शिकायत देते हुए कहा कि उसकी शादी दिल्ली क्षेत्र में हुई है। मगर, अब पति व ससुराल वाले उसे दहेज के लिए मारते-पीटते हैं। वहां से इस मामले को जिला महिला सेल में भेज दिया गया। सेल में दोनों पक्षों को सुनवाई के लिए बुलाया गया, तो महिला...अधिक »
 
           प्रस्तुति -शालिनी कौशिक

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

सलाम मदर इण्डिया को -लघु कथा


सलाम मदर  इण्डिया को -लघु कथा 

   
'विलास ..  .. विलास ' बाइक पर विलास के  घर  के  बाहर  कुंदन  और  किशोर  दबी  जुबान  में आवाज  लगा  रहे  थे  .फरवरी के महीने  की  सुबह  के चार  बज रहे थे . विलास हल्के  क़दमों  से  हाथ में एक थैला लेकर चुपके से घर से निकल लिया .बाइक पर  किशोर के पीछे  विलास के बैठते  ही  कुंदन ने  बाइक  स्टार्ट  कर  दी .हवा  में उड़ते  हुए  तीनों  एक घंटे  में शहर  के चौराहे  पर पहुँच  गए  .विलास ने  घडी  में टाइम  देखा  .पांच  बजने  वाले  थे .कुंदन बोला  -''तैयार  रहना  विलास आज उन दोनों की सारी  हेकड़ी  निकाल देंगें .'' तभी  सामने  से स्कूटी  पर आती  दो  छात्राएं  दिखाई  दी . उनके थोडा आगे  निकलते ही कुंदन ने बाइक उनकी  स्कूटी  के पीछे दौड़ा दी .सड़क  पार होते   ही स्कूटी ज्यों   ही एक   गली  में  मुड़ी  कुंदन ने सुनसान  इलाका  देख  अपनी  बाइक की   रफ़्तार  बढ़ा दी और स्कूटी के आगे जाकर रोक  दी .तेज ब्रेक लगाने  के कारण स्कूटी का संतुलन बिगड़ा और संभलते संभलते भी भी दोनों छात्राएं सड़क पर गिर पड़ी .विलास तेजी से बाइक से उतरा और थैले में से बोतल निकालकर उनकी ओर बढ़ा .बोतल का ढक्कन  खोलकर उसमे भरा  द्रव सड़क पर गिरी छात्राओं के चेहरों पर  उड़ेल  दिया .छात्राओं ने चीखकर अपना  मुंह ढक लिया  पर ये क्या वहां चारो  ओर गुलाब जल की खुशबू फ़ैल गयी .विलास ने हाथ में पकड़ी बोतल के मुंह को नाक के पास  लाकर  सूंघा  ..उसमे से गुलाब जल की ही खुशबू आ रही  थी  .उसने बोतल को ध्यान  से देखा .ये तेजाब वाली बोतल नहीं थी .
तभी  किशोर जोर  से बोला  -''....विलास जल्दी भाग .......पुलिस ...पुलिस पुलिस की जीप आ रही है  .विलास के हाथ कांप  गए  बोतल हाथ से छूटकर वही गिर गयी ..विलास बाइक की ओर दौड़ा तभी गली में एक कार आकर  रुकी .विलास पहचान गया ये उनकी ही कार थी .कार का गेट  तेजी से खुला  और एक महिला उसमे  से बाहर   निकली .विलास उन्हें देखते  ही बोला  .-''..मम्मी  आप   ...यहाँ ....!!!'' पीछे से आती पुलिस की जीप भी वहां आकर रुकी .महिला ने विलास के पास आकर  एक जोरदार  तमाचा  उसके  गाल पर जड़ दिया और क्रोध  में कांपते हुए  बोली -''....मैं  तेरी  मम्मी नहीं .!!''दौड़कर आते पुलिस के सिपाहियों को देखकर तीनों  भागने  का प्रयास  करने  लगे  पर विफल  रहे  .विलास की मम्मी ने फिर उन छात्राओं के पास पहुंचकर  उन्हें  सहारा  देकर  खड़ा  किया ओर उन्हें अपनी कार से डॉक्टर  की क्लिनिक  तक  पहुँचाया .................फिर एक लम्बी सांस  लेकर  सोचा -'''अगर  मैं विलास की गतिविधियों पर ध्यान न देती और तेजाब की बोतल की जगह थैले में गुलाब जल की बोतल न रखती तो आज उसने तो इन  कलियों को झुलसा ही डाला था  .
                                       shikha kaushik 

श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !


सर्वप्रथम आप जानिए ''संकष्टनाशनस्तोत्रं '' के बारे में -
Ganesha Chaturthi Wallpapers''नारद'' जी कहते हैं -
''पहले मस्तक झुकाकर गौरिसुत को करें प्रणाम ; आयु,धन, मनोरथ-सिद्धि ;स्मरण से मिले वरदान ;
'वक्रतुंड' प्रथम नाम है ;''एकदंत'' है  दूजा ;
तृतीय 'कृष्णपिंगाक्ष' है ;'गजवक्त्र' है चौथा ;
'लम्बोदर'है पांचवा,छठा 'विकट' है नाम,
'विघ्नराजेन्द्र' है सातवाँ ;अष्टम 'धूम्रवर्ण' भगवान,
नवम 'भालचंद्र' हैं ,दशम 'विनायक' नाम ,
एकादश 'गणपति' हैं ,द्वादश 'गजानन' मुक्तिधाम ,
प्रातः-दोपहर-सायं जो नित करता नाम-ध्यान ;
सब विघ्नों का भय हटे, पूरण होते काम  ,
बारह-नाम का स्मरण,सब सिद्धि करे प्रदान ;
ऐसी  महिमा प्रभु की उनको है सतत प्रणाम ,  
इसका जप नित्य करो ;पाओ इच्छित वरदान ;
विद्या मिलती छात्र को ,निर्धन होता धनवान ,
जिसको पुत्र की कामना उसको मिलती संतान ;
मोक्षार्थी को मोक्ष का मिल जाता है ज्ञान ,
छह मास में इच्छित फल देता स्तोत्र महान ,
एक वर्ष जप करने से होता सिद्धि- संधान ,
ये सब अटल सत्य है ,भ्रम का नहीं स्थान ;
मैं 'नारद 'यह बता रहा ;रखना तुम ये ध्यान ,
जो लिखकर स्तोत्र ये अष्ट-ब्राहमण को करे दान ;
सब विद्याएँ जानकर बन जाता है विद्वान .''

                    
प्रथम -पूजनीय -श्री गणेश [अष्ट विनायक ]
किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व ''श्री गणेशाय नम: '' मन्त्र का उच्चारण समस्त विघ्नों को हरकर कार्य की सफलता को सुनिश्चित करता है .पौराणिक आख्यान के अनुसार -एक बार देवताओं की सभा बुलाई गयी और यह घोषणा की गयी कि-''जो सर्वप्रथम तीनों लोकों का चक्कर लगाकर लौट आएगा वही देवताओं का अधिपति कहलायेगा .समस्त देव तुरंत अपने वाहनों पर निकल पड़े किन्तु गणेश जी का वाहन तो मूषक है जिस पर सवार होकर वे अन्य देवों की तुलना में शीघ्र लौट कर नहीं आ सकते थे .तब तीक्ष्ण मेधा सम्पन्न श्री गणेश ने   माता-पिता [शिव जी व्  माता पार्वती ] की परिक्रमा की क्योंकि तीनों लोक माता-पिता के चरणों  में बताएं गएँ हैं .श्री गणेश की मेधा शक्ति का लोहा मानकर उन्हें 'प्रथम पूज्य -पद ' से पुरुस्कृत किया गया .
 ''अष्ट -विनायक ''
भगवान   श्री गणेश के अनेक   रूपों   की पूजा   की जाती  है .इनमे इनके आठ स्वरुप अत्यधिक प्रसिद्ध  हैं .गणेश जी के इन   आठ स्वरूपों   का नामकरण   उनके   द्वारा   संहार किये गए असुरों के आधार पर किया गया है 
                                             
... ashta...
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हे अष्टविनायक तेरी जय जयकार !
हे गणनायक !  तेरी जय जयकार  !
हे गौरी सुत ! हे शिव  नंदन !
तेरी महिमा  अपरम्पार   
हे अष्टविनायक तेरी जय जयकार  !
प्रथम विनायक   वक्रतुंड है सिंह सवारी  करता   ;
मत्सर असुर का वध कर दानव भगवन पीड़ा सबकी हरता ,
हे गणेश तेरी जय जयकार ! 
हे शुभेश तेरी जय जयकार !
द्वितीय विनायक एकदंत मूषक की करें सवारी ;
मदासुर का वध कर हारते विपदा सबकी भारी ,
हे गजमुख  तेरी जय जयकार 
हे सुमुख तेरी जय जयकार .
नाम महोदर तृतीय विनायक मूषक इनका  वाहन  ;
मोहसुर का नाश ये  करते इनकी महिमा पावन ,
हे विकट तेरी जय जयकार !
हे कपिल तेरी जय जयकार !
चौथे रूप में प्रभु विनायक धरते नाम गजानन ;
लोभासुर संहारक हैं ये मूषक इनका वाहन ,
हे गजकर्णक तेरी जय जयकार !
हे धूम्रकेतु तेरी जय जयकार ! 
Ashtavina...
प्रभु   विनायक  पंचम रूप लम्बोदर  का धरते ;
करें सवारी मूषक की क्रोधासुर  दंभ हैं हरते ,
हे गणपति तेरी जय जयकार !
हे गजानन तेरी जय जयकार ! विकट नाम के षष्ट विनायक सौर ब्रह्म के धारक ;
है मयूर वाहन इनका ये कामासुर संहारक ,
हे गणाध्यक्ष तेरी जय जयकार !
हे अग्रपूज्य तेरी जय जयकार !
विघ्नराज अवतार प्रभु का सप्तम आप विनायक ;
वाहन शेषनाग है इनका ममतासुर  संहारक ,
हे विघ्नहर्ता तेरी जय जयकार !
हे विघ्ननाशक तेरी जय जयकार !
धूम्रवर्ण हैं अष्टविनायक शिव ब्रह्म  रूप  प्रभु का ;
अभिमानासुर संहारक मूषक वाहन है इनका ,
हे महोदर  तेरी जय जयकार !
हे लम्बोदर तेरी जय जयकार !
                                               

                                श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !
                                              शिखा कौशिक 

सोमवार, 17 सितंबर 2012

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१८ में भाग लें


'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक -१८ 



"[चौपाई  छंद  ]

 कन्या करों में कलम सुहाती * बात समझ ये क्यूँ ना  आती !
 मन में अज्ञान मैल समाया  * ज्ञान झाड़ू से हो सफाया  !!"

 शिक्षित कन्या कुल मान बढाती * नई पीढ़ी  शिक्षित हो जाती !
 इससे   झाड़ू मत लगवाओ  * कागज कलम इसे पकडाओ  !!"

                                               SHIKHA KAUSHIK 

शनिवार, 15 सितंबर 2012

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक १८

 अधिक से अधिक संख्या में शामिल होकर 

इस संवेदनशील विषय पर  

छंद रचें -

और नकद पुरस्कार प्राप्त करें-

रविकर 

'चित्र से काव्य तक' प्रतियोगिता अंक १८ 

http://www.openbooksonline.com/

(शक्ति) 
पहचाने नौ कन्यका, करे समस्या-पूर्ति ।
दुर्गा चंडी रोहिणी, कल्याणी त्रिमूर्ति ।
कल्याणी त्रिमूर्ति, सुभद्रा सजग कुमारी ।
शाम्भवी संभाव्य, कालिका की अब बारी ।
लम्बी झाड़ू हाथ,  लगाए अकल ठिकाने  ।
असुर ससुर हत्यार, दुष्ट मानव घबराने ।।

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

                               कितना सहेंगी हमारी बेटियां 

बिहार के सीतामढ़ी की कंचन बाला  जब ऊपर भगवान  के पास पहुंची होगी तो जरुर पूछी होगी कि मुझे लड़की क्यों बनाया ? काश ! मुझे भी लड़का बनया होता , मैं भी जी पाती शान से और पूरी कर पाती  अपने सपने , जो मैंने देखे थे । जी पाती आजादी से बंधनमुक्त आजाद पंछी की भांति । कोई मनचला हमें नहीं छेड़ पाता और न ही मुझे मानसिक प्रताड़ना प्रताड़ना मिलती । मेरी बात किसी ने नहीं सुनी और वो मुझे परेशान  करता रहा , अंत में मुझे मौत को गले लगाना पड़ा । जब मैं ही नहीं रहूंगी तो वो किसे तंग करेगा ?
                   यही सवाल छोड़ गयी है कंचनबाला समाज के सामने । उसकी बेबसी ने उसे आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया । कोई रास्ता नहीं बचा था उसके पास इसीलिए उसने अपने सुसाइड नोट में  ये लिखा । इसमें उसकी जैसी हजारों लड़कियों के साथ हो रहे अत्याचार की झलक मिलती है और उनकी बेबसी की झलक मिलती है ।
                 कंचन बाला भी उन्ही हजारों लड़कियों की तरह छेड़खानी की शिकार बनी और जब-जब उसने विरोध किया सजा उसे ही भुगतनी पड़ी । घर-परिवार के लोग उसे ही दोषी ठहराते रहे और वो मनचला उसे लगातार अपना शिकार बनाता  रहा । जितना उससे बन पड़ा उसने उसका विरोध किया । उसका भाई जब उसका रक्षक बना तो उसे उन बदमाशों ने काफी पीटा । जब रिपोर्ट लिखाने  थाने गयी तो पुलिस ने कोई सहायता नहीं की बल्कि उससे समझौता करने की सीख  दी । पुलिस यदि समय पर उसकी सहायता करती तो वो मौत को गले नहीं लगाती पर पुलिस ने सीख  दी कि इससे लड़की की बदनामी होगी , फिर तो वो बदमाश और भी आगे बढ़ गया । अब कंचन बाला हताश  हो चुकी थी । उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था । पढाई छूट  गयी । इस कच्ची उम्र में उसने समाज की गन्दगी को नजदीक से देखा । कितना मानसिक तनाव और बेबसी में होगी उस रात जब उसने आत्महत्या का निर्णय लिया होगा । अपने सुसाइड नोट में उसने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया और प्रार्थना की कि उस बदमाश को सजा दी जाय ।
                   इस तरह की घटना के लिए कौन जिम्मेदार माना जायेगा ? अगर सही समय पर उसकी मदद की गयी होती वो आज हमारे बीच हंसती - खेलती होती ।

मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी


Stamp on Tulsidas सात कांड में रची तुलसी ने ' मानस '  ;
आठवाँ लिखने का क्यों कर न सके साहस ?
आठवे में लिखा  जाता  सिया  का विद्रोह  ;
पर त्यागते  कैसे  श्री राम यश का मोह ?
लिखते अगर तुलसी सिया का वनवास ;
घटती राम-महिमा उनको था विश्वास .
अग्नि परीक्षा और शुचिता प्रमाणन  ;
पूर्ण कहाँ इनके बिना होती है रामायण ?  आदिकवि  सम  देते  जानकी  का  साथ ;
अन्याय को अन्याय कहना है नहीं अपराध . 
लिखा कहीं जगजननी कहीं  अधम नारी ;
मानस के रचनाकार में भी पुरुष अहम् भारी .
तुमको दिखाया पथ वो  भी  थी एक नारी ;
फिर कैसे लिखा तुमने ये ताड़न की अधिकारी !
एक बार तो वैदेही की पीड़ा को देते स्वर ;
विस्मित हूँ क्यों सिल गए तुलसी तेरे अधर !
युगदृष्टा -लोकनायक गर ऐसे रहे मौन ;
शोषित का साथ देने को हो अग्रसर कौन ?
भूतल में क्यूँ समाई  सिया करते स्वयं मंथन ;
रच काण्ड आँठवा करते सिया का वंदन .  
चूक गए त्रुटि शोधन  होगा नहीं कदापि ;
जो सत्य न लिख पाए वो लेखनी हैं पापी .
हम लिखेंगे सिया  के विद्रोह  की  कहानी ;
लेखन में नहीं चल सकेगी पुरुष की मनमानी !!
                                  शिखा कौशिक 'नूतन'

हिन्दी-- एतिहासिक आइना एवं वर्तमान परिदृश्य ...डा श्याम गुप्त का आलेख....


                                       
              हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति के परिदृश्य में विभिन्न परिस्थितियों व स्थितियों पर दृष्टि डालने के लिए पूरे परिदृश्य को निम्न कालखण्डों में देखा जा सकता है--- 
      १.पूर्व गांधी काल 
      २. गांधी युग
      ३. नेहरू युग 
      ४. वर्त्तमान परिदृश्य ....
        गोस्वामी तुलसीदास जी ने सर्वप्रथम 'रामचरित मानस'  को  संस्कृत की अपेक्षा हिन्दी में रचकर हिन्दी को भारतीय जन-मानस की भाषा बनाया | हिन्दी तो उसी समय राष्ट्रभाषा होगई थी जब घर-घर में रामचरित मानस पढी और रखी जाने लगी |  भारतेंदु युग, द्विवेदी युग में हिन्दी के प्रचार-प्रसार से देश भर में हिन्दी का प्रभाव लगातार बढ़ता रहा यहाँ तक कि एक समय मध्य प्रांत में एवं बिहार में हिन्दी निचले दफ्तरों व अदालतों की सरकारी भाषा बन चुकी थी यद्यपि युक्तप्रांत में इसी प्रकार के प्रस्ताव को कुछ लोगों व तबकों के विरोध के कारण हिन्दी को पिछड़ जाना पडा, जो बाद में १९४७ ई. में संवैधानिक मजबूरी से हुआ |

       दुर्भाग्य वश अंग्रेज़ी राज्य के प्रसार नीति के तहत प्रारम्भिक काल में मैकाले की नीति से रंग व रक्त में हिन्दुस्तानी किन्तु रूचि, चरित्र, बुद्धि व चिंतन से अंग्रेजों की फौज खडी करने के लिए अंग्रेज़ी का प्रचार-प्रसार व हिन्दी की उपेक्षा से, हिन्दी विरोधी पीढियां उत्पन्न हुईं जो बाद में स्वदेशी शासन में भी सम्मिलित हुईं. ऐसे ही भारतीयों के शब्दों -"शिक्षा में भारतीयों को अंग्रेजों के समकक्ष आने में करोड़ों वर्ष लगेंगे" एवं "अब कैम्ब्रिज भारतीयों से भर गया है",- के कारण केम्ब्रिज छोड़ कर ऑक्सफोर्ड जाना आदि क्रिया-कलापों से हिन्दी के पिछड़ने की पारीस्थितियाँ  उत्पन्न हुई 

       गांधी जी के आविर्भाव के युग में मौ.अली जिन्ना के हिन्दी विरोध तथा उर्दू को मुसलमानों की भाषा की घोषणा के प्रतिक्रया स्वरुप अधिकाँश उर्दूभाषी हिन्दुओं ने उर्दू को छोड़कर हिन्दी अपनाई उर्दू प्रेमी कवि -साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द ने हिन्दी में लिखना आरम्भ कर दिया हिन्दी को लगभग सारे राष्ट्र ने खुले दिल से स्वीकार किया |
उत्तर-पश्चिम भारत पूर्ण रूप से हिन्दी के प्रभाव में था एवं दक्षिण भारत में हिन्दी के स्कूल व कालिज खुलने लगे थे तथा पूरी तरह से प्रचार-प्रसार आरम्भ होगया था कहीं भी हिन्दी का कोई विरोध नहीं था, बिना किसी संरक्षण के देश भर में स्वतः हिन्दी को अपनाया गया बाद में गांधीजी के तुष्टीकरण, मुस्लिमों में अलगावबाद व अंग्रेजों की नीति के कारण हिन्दी के पिछड़ने का अभियान प्रारम्भ होगया | स्वयं महात्मा गांधी ने अपने पुत्र देवदास गांधी को दक्षिण में हिन्दी के प्रचार-प्रसार को भेजा परन्तु बाद में खिलाफत आन्दोलन में मुसलमानों को साथ लेने के कारण वे हिन्दी की बजाय हिन्दुस्तानी के पक्षधर होगये, और हिन्दी के प्रचार-प्रसार को धक्का लगा |

           कांग्रेस पर विदेशों में पढ़े लिखे व अंग्रेज़ी पढ़े लोगों के वर्चस्व से नेहरू जी के आविर्भाव के युग में हिन्दी विरोध के स्वर मुखर होने लगे; परन्तु उर्दू के पाकिस्तान की भाषा बनने पर संविधान सभा में बहुमत से हिन्दी को राजभाषा स्वीकार किया गया इसके विरोध में 'बहुमत के निर्णय को अल्पमत पर थोपने' जैसे कथनों से हिन्दी विरोधियों को नया हथियार मिला जो बाद में हिन्दी के विरोध में प्रयोग होता रहा |

         आज़ादी के बाद महत्वपूर्ण पदों पर अंग्रेज़ी में पारंगत व पाश्चात्य जीवन शैली वाले व्यक्तियों के पहुँचने से जनता में यह सन्देश गया कि अंग्रेज़ी के बिना देश का काम नहीं चलेगा यहाँ तक कि ईसाई मिशनरीज़ भी देश छोड़कर जाते-जाते रुक गईं, और हिन्दी के स्थान पर अंग्रेज़ी स्कूलों के आने का दुश्चक्र प्रारम्भ होगया जब मुख्यमंत्रियों के सम्मलेन में देवनागरी लिपि प्रयोग करने के पक्ष में प्रस्ताव पास हुआ तो केन्द्रीय मंत्री मंडल ने इसे लागू नहीं किया |  यद्यपि पूरे देश में हिन्दी का कहीं विरोध नहीं था |
         इस प्रकार विभिन्न एतिहासिक भूलों , तुष्टीकरण , राजनैतिक साहस व इच्छा की कमी के चलते आज हिन्दी भाषा का परिदृश्य यह है कि यद्यपि देश में सिर्फ २-३ % लोग अंग्रेज़ी जानने वाले हैं तथा साक्षरता विकास के साथ-साथ हिन्दी के समाचार पत्रों आदि का वितरण अंग्रेज़ी समाचार पत्रों की अपेक्षा काफी बढ़ रहा है परन्तु नव-साक्षरों का सांस्कृतिक स्तर सामान्य ही है, उनमें उच्च सांस्कृतिक कृतियाँ पढ़ने-समझने की क्षमता नहीं है इसका कारण है कि हिन्दी राजभाषा होते हुए भी समाज के सबसे ऊपरी श्रेष्ठ व्यक्तित्व एवं निर्णय करने वाले उच्च अधिकारी की भाषा आज भी अंग्रेज़ी है, उनके प्रेरणा श्रोत व आदर्श पश्चिमी विचार व साहित्य है; यहाँ तक कि तथाकथित हिन्दीवादी कवि व साहित्यकार, रचनाकार, मठाधीश आदि भी इस रंग में रंगे हुए हैं अतः वे देश के नव-कर्णधारों को उच्च सांस्कृतिक व साहित्यिक क्षमता प्रदान करने में असमर्थ हैं अतः हिन्दी की श्रेष्ठ पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन धीरे धीरे बंद होकर सामान्य स्तर के सस्ते, मनोरंजन से भरपूर अंग्रेज़ी साहित्य से प्रभावी, अनुशासित व नक़ल के प्रकाशनों की भरमार होती जारही है चमक-धमक व सुविधापूर्ण अंग्रेज़ी स्कूलों का मोह, हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बाधक है हिन्दी फिल्मों से करोड़ों कमाने वाले अभिनेता सामान्य बात भी अंग्रेज़ी में करते हैं, विदेशों में पढ़ते व घूमते एवं विदेशी उत्पादों का विज्ञापन भी करते हैं रही सही कसर मुक्त बाज़ार, मुक्त मीडिया, बड़े-बड़े शो रूम व माल कल्चर देश में अंग्रेज़ी के प्रसार व हिन्दी प्रसार को रोकने के लिए कटिबद्ध हैं; अतः स्कूल के बच्चे सैतीस की बजाय थर्टी सेवन ही समझ पाते हैं |

        यद्यपि समय समय पर दिग्गज व हिन्दी प्रेमी नेताओं ने हिन्दी की पुरजोर वकालत की है एवं हिन्दी के प्रचार-प्रसार का मुद्दा भी उठाया है परन्तु कालान्तर में कुर्सी मोह के कारण छोड़ दिया गया |

        आज अंग्रेज़ी सिर्फ हिन्दी ही नहीं अपितु क्षेत्रीय भाषाओं को भी प्रभावित कर रही है | माताओं के अंग्रेज़ी भाषी होने से बच्चों की घरेलू भाषा अंग्रेज़ी होती जारही है कम्प्युटर, मोबाइल, मल्टी नॅशनल कंपनियों की बाढ़, नए -नए विदेशी अवधारणा वाले पाठ्यक्रम, अच्छा वेतन, विदेशों में घूमने की सुविधा आदि ने हिन्दी मोह छोड़कर अंग्रेज़ी मोह को बढ़ावा दिया है यह सब इसलिए हुआ कि हिन्दी राजभाषा घोषित होने के १५ वर्ष तक, और अब सदा के लिए, सरकारी कार्य में अंग्रेज़ी साथ-साथ बनी रहेगी, यह शर्त लगाई गयी | विश्व में शायद ही यह स्थिति कहीं हो |
हिन्दी की वर्त्तमान स्थिति का एक कारण यह भी है कि स्वतन्त्रता के समय हिन्दी की प्रतिस्पर्धा केवल अंग्रेज़ी से थी, जो कालान्तर में सरकारी नीतियों, अंग्रेज़ी समाचार पत्रों, मीडिया व उनके अँगरेज़-परस्त मानस-पुत्रों व छुद्र राजनैतिक स्वार्थों ने इसे अहिन्दी भाषी राज्यों के झगड़ों में परिवर्तित कर दिया, ताकि एकता बनाए रखने के बहाने से देश भर में सदा के लिए अंग्रेज़ी को स्थान दिया जा सके |

           अच्छा होगा कि हम वर्त्तमान परिदृश्यों, स्थितियों व परिस्थितियों को समझें, मनन करें एवं समाज की वास्तविक उन्नंति के मूलमन्त्र को ध्यान में रखें --- " निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति कौ मूल "|


JeEwAn Ek SaNgHaRsH: कौन है जरूरी..प्यार या दोस्ती? सवाल खुद से और आप स...

JeEwAn Ek SaNgHaRsH: कौन है जरूरी..प्यार या दोस्ती? सवाल खुद से और आप स...: प्यार बड़ी या दोस्ती? सवाल खुद से और आप सबसे ….: ईश्वर ने जब दुनिया बनाई और रिश्तों को एक नई पहचान दी तो उन सबसे बढ़कर दो रिश्ते बनाये.. स...

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

नादानी ये माँ-बाप की बच्चे हैं भुगतते ,

नादानी ये माँ-बाप की बच्चे हैं भुगतते ,
flying_bird.gif image by lukysubiantoro  Geetika Sharma suicide case: Delhi police may seek extension of Kanda’s remand bird.gif image by yolande-bucket-bucket

शबनम का क़तरा थी मासूम अबलखा ,
वहशी दरिन्दे के वो चंगुल में फंस गयी .
चाह थी मन में छू लूं आकाश मैं उड़कर ,
कट गए पर पिंजरे में उलझकर रह गयी .
   
   थी अज़ीज़ सभी को घर की थी लाड़ली ,
अब्ज़ा की तरह पाला था माँ-बाप ने मिलकर .
आई थी आंधी समझ लिया तन-परवर उन्होंने ,
तहक़ीक में तबाह्कुन वो निकल गयी .

 महफूज़ समझते थे वे अजीज़ी का फ़रदा   ,
तवज्जह नहीं देते थे तजवीज़ बड़ों की .
जो कह गयी जा-ब-जा हमसे ये तवातुर ,
हर हवा साँस लेने के काबिल नहीं होती .

जिन हाथों में खेली थी वो अफुल्ल तन्वी ,
जिन आँखों ने देखी थी अक्स-ए-अबादानी .
खाली पड़े हैं हाथ अब बेजान से होकर ,
आँखें किन्ही अंजान अंधेरों में खो गयी .

नादानी ये माँ-बाप की बच्चे हैं भुगतते ,
बाज़ार-ए-जहाँ में यूँ करिश्मे नहीं होते .
न होती उन्हें तुन्द्ही छूने की फलक को ,
औलाद की कुर्बानियां न यूँ दी गयी होती .

शब्दार्थ -अबलखा-एक चिड़िया ,अज़ीज़ -प्रिय ,अब्ज़ा -लक्ष्मी सीपी मोती ,तन परवर -तन पोषक ,
           तहकीक -असलियत ,तबाह्कुन -बर्बाद करने वाला ,अजीज़ी -प्यारी बेटी ,फ़रदा -आने वाला दिन ,
            जा-ब-जा -जगह जगह ,तवातुर -निरंतर ,बाज़ार-ए-जहाँ -दुनिया का बाज़ार ,अक्स-ए-अबादानी-आबाद होने का चित्र ,
             तन्वी-कोमल अंगो वाली ,अफुल्ल-अविकसित ,तुन्द्ही -जल्दी 
                                                                   शालिनी कौशिक  

बुधवार, 12 सितंबर 2012

एक ही रास्ता ...डा श्याम गुप्त की कहानी...


                        
                 क्या बात है , आज बड़ी सुस्त-सुस्त सी बोल रही हो मुक्ता !, फोन पर बात करते हुए शालिनी पूछने लगी |
                ‘कुछ नहीं, क्या बताऊँ शालिनी, आज न जाने किस बात पर राज ने चांटा मार दिया मुझे‘, मुक्ता कहने लगी, ’आजकल हर बात पर मूर्ख कहना, बात बात पर तुममें अक्ल नहीं है इत्यादि कहने लगा है राज | कितनी बार हर प्रकार से समझाया है | हर बार सौरी यार ! कहकर माफी मांग लेता है, मनाता भी है और फिर वही | पता नहीं क्या होगया है राज को, पहले तो ऐसा नहीं था | इतना पढ़े-लिखे होने के बावजूद भी हम क्या कर पाती हैं | सिवाय इसके कि तलाक लेलो.... क्या और कोई मार्ग नहीं है शालिनी हम लोगों के पास ?
                ‘क्या किया जाय मुक्ता, घर-घर यही हाल है | यही कहानी है स्त्री की अब भी | जाने क्यों एक नारी के उदर से ही जन्मा पुरुष क्यों उसे ही ठीक से समझ नहीं पाता और ऐसा व्यवहार करने पर आमादा होजाता है | लोग कहते हैं कि नारी को ब्रह्मा भी नहीं समझ पाया | पर पुरुष का यह व्यवहार सदा से ही समझ से परे है |’ शालिनी कहने लगी |     
                मुक्ता सोचने लगी,  ‘उसने प्रेम-विवाह किया, घर वालों से लड़-झगड कर | यद्यपि उचित कारण था | पुराने विचारों वाले रूढ़िवादी परिवार में जन्म लेना और अपनी दो बड़ी बहनों की इसे ही परिवारों वाले ससुराल में दशा देखकर भाग जाना चाहती थी वह उस माहौल से | आधुनिक परिवार, आधुनिक विचारधारा के साथ जीवनयापन हेतु | मिला भी सब कुछ ठीक-ठाक | पति, परिवार, सास-ससुर, खानदान | परन्तु आज  इस मोड़ पर..... क्यों सोचना पड रहा है |’
               उसे काम बाली बाई की याद आने लगती है | कुछ महीने पहले ही जब उसे पता चला था कि उसका पति उसे रोजाना मारता -पीटता है तो स्वयं उसने कहा था कि छोड़ क्यों नहीं देती | कितना आसान है दूसरों को परामर्श देदेना | उसे याद आया बाई का उत्तर ,’ क्या करें मेमसाहिब, कहाँ जायं | मारता है तो प्यार भी करता है | दो ही रास्ते हैं, या तो ऐसे ही चलने दिया जाय या छोडकर अलग होजायं और दूसरा करलें | दूसरा भी कैसा होगा क्या भरोसा | तीसरा रास्ता है ...अकेले ही रहना का | सब जानते हैं बीबीजी कि अकेली औरत का कोई नहीं होता, न रिश्ते-नातेदार, न परिवार, न पडौसी, न समाज | सरकार चाहे जितने क़ानून बनाले, पर सरकार है कौन ? वही पडौसी, समाज के लोग | वे ही पुलिस वाले, वकील व जज हैं | और जब तक आपको स्वयं को और सरकार–पुलिस को पता चलता है, होश आता है, सरकारी मशीन कार्यरत होती है ज़िंदगी खराब हो चुकी होती है |  फिल्मों की हीरोइनों एवं तमाम पढ़ी लिखी ऊंची अफसर औरतों की अलग बात है | पर हीरोइनों की भी जिंदगी भी कोई ज़िंदगी है मेमसाहिब, और अंत तो खराब ही होता है अक्सर |  और अकेले पुरुष को भी कौन पूछता है यहाँ |  जिस आदमी के साथ कोई नहीं होता क्या नहीं करता ये समाज- संसार, ये लोग उसके साथ | इससे तो अच्छा है कि लड़ते-झगडते, पिटते-पीटते, कभी दबकर, कभी दबाकर यूंही चलने दिया जाय | पुरुष को प्यार से जीतो या सेवा..तप..त्याग से, चालाकी से या ट्रिक से | स्त्री को पुरुष को जीतना ही होता है यही एक रास्ता है | बाहर तमाम पुरुषों की गुलामी की जलालत भरी ज़िंदगी से तो एक पुरुष की गुलामी अधिक बेहतर है | कितना अच्छा होता बीबीजी मर्द लोग भी हमारे बारे में ऐसा ही अच्छा सोचते |’
              परिवार वालों के साथ कोइ प्रोब्लम है क्या ?’ फोन पर शालिनी पूछ रही थी | मुक्ता अपने आप में लौट आई, बोली,’ नहीं , मम्मी–पापा बहुत अच्छे हैं | वे स्वयं कभी-कभी परेशान होजाते हैं राज के इस व्यवहार से |’
              ‘तो मेरे विचार से यह व्यक्तिगत मामला है, शालिनी कहने लगी, ’ जो प्रायः चाहतों का ऊंचा आसमान न मिल पाने पर इस प्रकार व्यक्त होने लगता है | हो सकता है तुम उसकी चाहत व आकांक्षा के अनुरूप न कर पाती हो या किन्हीं बातों से उसका अहं टकराता हो | या दफ्तर की कोई प्रोब्लम हो | हालांकि इसका अर्थ यह नहीं कि पुरुष को, पति को ऐसे व्यवहार करने की छूट है | दौनों मिलकर सुलझाओ, खुलकर बात करो इससे पहले कि बात और आगे बढे | दूसरे शायद ही इसमें कुछ कर पायें | बड़े अनुभवी लोगों का परामर्श भी राह दिखा सकता है पर कितनी दूर तक | चलना तो स्वयं को ही पडता है |
            यह भी है कि कुछ पुरुष, बच्चे ही होते हैं, मन से ..पर मानने को तैयार नहीं होते| वे विशेष रूप से अटेंशन चाहते हैं हर दम | कई बार संतान के आने पर भी ऐसा होता है |’, शालिनी पुनः कहने लगी, ’प्यार से आदमी को काबू में करना ही औरत की तपस्या है, साधना है, त्याग है | जो पुरुष की तपस्या भंग भी कर सकती है मेनका-विश्वामित्र की भांति, वैराग्य भी भंग कर सकती है शिव-पार्वती की भांति और उसे तपस्या-वैराग्य में रत भी कर सकती है तुलसी—रत्ना की भांति |  काश सभी पुरुष नारी की इस भाषा को समझ पाते | इस भावना व क्षमता की कदर कर पाते |
             ‘पर पुरुष यह सब कहाँ समझता है अपने अहं-अकड में |’ मुक्ता बोली |
             सचमुच, शालिनी कहने लगी, मैं सोचती हूँ कि एक ही आशापूर्ण रास्ता बचता है कि हम स्त्रियाँ जब अपने त्याग, तपस्या से अपनी संतान को विशेषकर पुत्र को संस्कार देंगीं तभी पुरुषों में संस्कार आयेंगे..बदलाव आएगा | इस बदलाव से ही स्त्री का जीवन सफल, सहज व सुन्दर होगा |
         “ यहि आशा अटक्यो रहे अलि गुलाव के मूल |”