रविवार, 30 दिसंबर 2012

रौब के तोते -लघु कथा

 

पुलिस स्टेशन में लैंडलाइन फोन बजा .थानाध्यक्ष ने रिसीवर उठाया .फोन पर आवाज़  साफ़ नहीं आ रही थी .उधर से कोई महिला बोल रही थी .थानाध्यक्ष जी समझने की कोशिश करते हुए प्रश्नों की बौछार करने में जुट गए -''.......क्या ...कौन भाग गयी ...किस इलाके से बोल रही हो ...भाई हमारा थाना वहां नहीं लगता ...अपने बच्चों को सँभालते नहीं....यहाँ फोन कर देते हो ......किसे किसे ढूंढें ....पहले ही गोली क्यों नहीं मार देते ....?'' ये कहकर थानाध्यक्ष जी ने फोन झटककर रख दिया .तभी उनका निजी  मोबाइल बज उठा .कॉल  घर से थी .वे कुछ बोलते उससे पहले ही उनकी श्रीमती जी का उन्हें लताड़ना शुरू हो गया - ''मोबाइल मिलाओ वो नहीं मिलता .थाने के नंबर पर फोन करो तो आप आवाज़ नहीं पहचानते .घंटे भर से आपको बता रही हूँ कि सपना एक चिट्ठी  लिखकर भाग गयी है किसी लड़के के साथ .ढूंढो उसे .'' ये कहकर गुस्से में श्रीमती जी ने फोन काट दिया और थानाध्यक्ष जी के रौब के तोते उड़ गए .
                               शिखा कौशिक 'नूतन '

8 टिप्‍पणियां:

kavita verma ने कहा…

bahut badiya

Shikha Kaushik ने कहा…

thanks kavita ji and yashoda ji

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत बढ़िया लघु-कथा -आगया ऊंट पहाड़ के नीचे

Unknown ने कहा…

vaah !

shyam gupta ने कहा…

उत्तम----जिसका जूता उसी का सर ....

उड़ता पंछी ने कहा…

jis tan lage vo tan jane
duja koi na jane.

very nice.

अपना आशीष दीजिये मेरी नयी पोस्ट

मिली नई राह !!

wish you a very happy new year.

Rajput ने कहा…

हा।।।हा।।हा।। खुबसूरत कटाक्ष , यही हाल है हमारी पुलिस का ,

सार्थक लेख

Shikha Kaushik ने कहा…

thanks a lot shayam gupt ji ,varjy nari swar ji ,udta panchhi ji ,shalini ji and rajput ji