बुधवार, 3 अक्टूबर 2012

ठिठोली या पुरुष की वास्तविक सोच !


यदि कोई महिला किसी सभा में  ये कह दे कि-''वक्त के साथ पति पुराना हो जाता है और उसमे वो मज़ा नहीं रह जाता '' तो   निश्चित रूप से  उस   महिला को कुलटा ,व्यभिचरिणी  और भी न  जाने  किन  किन  उपाधियों  से पुरुष वर्ग विभूषित कर डालेगा ...पर जब  पुरुष यह कहता  है कि -वक्त के साथ पत्नी  पुरानी   हो जाती  है और उसमे वो मज़ा नहीं रह जाता तब  सभा में  ठहाका गूँज  उठता  है .यही  है इस पुरुष प्रधान  भारतीय  समाज  की वास्तविकता  .इसबार ये कुत्सित विचार प्रकट किये हैं -केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल .नवभारत टाइम्स पर प्रकाशित इस समाचार ने अनायास ही मेरा ध्यान आकर्षित कर लिया -
JAISWAL
कानपुर।। कोलगेट मामले में जबर्दस्त विरोध झेल रहे केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल एक नए विवाद में घिर गए हैं। रविवार को अपने बर्थडे के मौके पर आयोजित एक कवि सम्मलेन में उन्होंने कुछ ऐसा कह दिया, जिसका महिलाएं जबर्दस्त विरोध कर रही हैं। मंगलवार को महिलाओं ने उनका पूतला फूंका और उनकी तस्वीरों पर जूते-चप्पल बरसाए। दरअसल, अपने जन्मदिन के मौके पर आयोजित कवि सम्मेलन में कोयला मंत्री जायसवाल ने टीम इंडिया को जीत की बधाई देने के क्रम में कहा, 'नई-नई जीत और नई-नई शादी का अलग महत्व है।' उन्होंने कहा, 'जिस तरह समय के साथ जीत पुरानी पड़ती जाती है उसी तरह वक्त के साथ बीवी भी पुरानी होती जाती है और उसमें वह मजा नहीं रह जाता है।' मौके पर मौजूद लोगों के मुंह से निकलकर सोमवार को शहर भर में यह बात क्या फैली, महिलाएं बिफर गईं।
महिला संगठनों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि इतने बड़े पद पर बैठे जायसवाल के मुंह से ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं। मंगलवार को जायसवाल के इस बयान के विरोध में महिलाएं सड़कों पर उतरीं। महिला संगठनों ने कहा है कि यह तो विवाह जैसी संस्था और शादीशुदा औरतों पर भद्दा कॉमेंट है। उन्होंने सवाल उठाए हैं कि मंत्री जी बताएं कि 'मजा' से उनका क्या मतलब है? विरोध में शामिल महिलाओं का कहना है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को उनसे इसका जवाब मांगना चाहिए, हम उनके इस आचरण की शिकायत सोनिया तक पहुंचाएंगे। कई महिला सगंठनों ने जायसवाल से इस मुद्दे पर इस्तीफे की मांग की है।श्रीप्रकाश जायसवाल ने इस मुद्दे पर माफी मांग ली है, लेकिन उन्होंने कहा है कि हमारे कॉमेंट को दूसरे अर्थ में लिया गया है। मेरे कहने का मतलब वह नहीं था, जो लोग समझ रहे हैं।''
                 चप्पल व् जूतों से ऐसे लोगो के पुतलों को तो पीटा जा सकता है पर पुरुष सोच में परिवर्तन लाने हेतु अभी बहुत लम्बा सफ़र तय करना होगा आये दिन दिए जाने वाले ऐसे वक्तव्य तो यही साबित करते हैं .
                        शिखा कौशिक 
                                                

8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाणी पर संयम बहुत जरूरी है!

Aditi Poonam ने कहा…

सुबह जब से यह पढ़ा है तब से मन में बहुत कुछ उमड़-घुमड़ रहा था शिखा जी आपने उसे शब्दों में उतार दिया ,खुद को बहुत गौरवान्वित महसूस करते है ऐसा करके कुछ पुरुष -shame

Sunil Kumar ने कहा…

मान गए नेता जी आपके बयान को बेशर्मी की हद हैं

virendra sharma ने कहा…

ठिठोली या पुरुष की वास्तविक सोच !

तू मैं ,(शादी से पहले )

तूमैं ,(हो गई शादी ,तू मैं मिलके हम हो गए )

तू तू .में में .... (हो गई कलह )

मंत्री जी इसी बात को व्यंजना में भी कह सकते थे .

अब भुगतो !

डा श्याम गुप्त ने कहा…

सही है....आत्म-नियंत्रण आवश्यक है....

---पुरुषों के समूह में जो बातें महिलाओं के ऊपर व्यक्त की जाती हैं वही महिलाओं की बैठकों में पुरुषों के प्रति भी...
--- परन्तु खुले समाज में व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण में रहना चाहिए ...

डॉ टी एस दराल ने कहा…

मित्रों की महफ़िल और सार्वजानिक मंच में फर्क रखना अत्यंत आवश्यक है .

Rachana ने कहा…

yahi hai aye aesa hi hota hai kya kahen
rachana

Unknown ने कहा…

सार्थक लेख | आम जनता के द्वारा चुन के गए नुमाइंदों की छेंक भी खबर बन जाती है | ऐसे में उन्हे अपनी वाणी पर नियंत्रण और अंकुश रखना अत्यंत ही आवश्यक है | मुझे तो लगता है हर किसी को कुछ भी बोलने से पहले ये जरूर सोचना चाहिए कि वो क्या बोल रहा है और कहाँ |
हद तो तब हो गई जब कॉंग्रेस की महिला मंत्री इस बात का विरोध करने के बजाय बयान पर लीपा पोती कर रही है|