शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

घर लागे नारी बिना, डूबा हुआ जहाज

कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल ||

 (शुभकामनाएं)
कर करवल करवा सजा,  कर सोलह श्रृंगार |
माँ-गौरी आशीष दे,  सदा बढ़े शुभ प्यार ||
   करवल=काँसा मिली चाँदी
कृष्ण-कार्तिक चौथ की,  महिमा  अपरम्पार |
क्षमा सहित मन की कहूँ,  लागूँ  राज- कुमार ||
Karwa Chauth
(हास-परिहास)
कान्ता कर करवा करे, सालो-भर करवाल |
  सजी कन्त के वास्ते, बदली-बदली  चाल ||
  करवाल=तलवार  
करवा संग करवालिका,  बनी बालिका वीर |
शक्ति  पा  दुर्गा   बनी,  मनुवा  होय  अधीर ||
करवालिका = छोटी गदा / बेलन जैसी भी हो सकती है क्या ?

 शुक्ल भाद्रपद चौथ का, झूठा लगा कलंक |
सत्य मानकर के रहें,  बेगम सदा सशंक ||

  लिया मराठा राज जस, चौथ नहीं पूर्णांश  |
चौथी से ही चल रहा,  अब क्या लेना चांस ??


(महिमा )  
नारीवादी  हस्तियाँ,  होती  क्यूँ  नाराज |
गृह-प्रबंधन इक कला, ताके पुन: समाज ||

 मर्द कमाए लाख पण,  करे प्रबंधन-काज |
घर लागे नारी  बिना,  डूबा  हुआ  जहाज  ||

7 टिप्‍पणियां:

आशा बिष्ट ने कहा…

SIR,bahut achchhi post hai....

S.N SHUKLA ने कहा…

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति,बधाई .

Unknown ने कहा…

सुंदर रचना

डा श्याम गुप्त ने कहा…

वाह ! सुलझे हुए दोहे ....

रविकर ने कहा…

वर्ज्य बहुत आभार है, एस. एन. शुक्ला विष्ट |
श्याम-चरण की वंदना, करती सारी सृष्टि ||

bhuneshwari malot ने कहा…

घर लागे नारी बिना, डूबा हुआ जहाज sahi , bahut hi khubsurat rachana h.

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छी प्रस्‍तुति !!